जय श्री कृष्ण 🙏
व्रज – श्रावण कृष्ण पक्ष द्वितीया
Saturday, 12 Jul 2025
प्रथम (रजत) हिंडोलना
आज से भाद्रपद कृष्ण द्वितीया अर्थात आगामी 32 दिवस तक प्रतिदिन प्रभु संध्या-आरती में हिंडोलने में झूलते हैं. चार यूथाधिपतिओं के भाव से आठ-आठ दिन कर कुल 32 दिवस ठाकुरजी हिंडोलना में विराजित हो झूलते हैं.
व्रज में चार स्थानों (नंदालय में, निकुंज में, श्री गिरिराजजी के ऊपर एवं श्री यमुना पुलिन के ऊपर) में हिंडोलना होते हैं. प्रथम 16 दिवस श्री ठाकुरजी और अगले 16 दिवस श्री स्वामिनीजी के भाव से हिंडोलना झुलाया जाता है. इन दिनों प्रतिदिन नित्य नवीन रंग के साज धराये जाते हैं. सोने के जडाऊ पंखा, बंटा आदि आते हैं.
प्रथम दिन श्रवण नक्षत्र में श्रीजी की डोलतिबारी में रजत हिंडोलना रोपण किया जाता है और हिन्दू शास्त्रोक्त विधि अनुसार हिंडोला का अधिवासन किया जाता है.
चांदी को शुभ माना गया है अतः डोलतिबारी में पहले दिन चांदी का हिंडोलना रोपित किया जाता है जिसके ऊपर ही विभिन्न मनोरथों में फूल-पान, फल-फूल आदि की कलात्मक सज्जा की जाती है. हिंडोलना के नीचे आसन बिछाया जाता है एवं उत्थापन के पश्चात शंख, झालर एवं घंटानाद के साथ श्री ठाकुर जी हिंडोलने में विराजित होते हैं.
उत्थापन उपरान्त डोल-तिबारी में हिंडोलना का अधिवासन होगा व भीतर के सेवकों की उपस्थिति में श्री मदनमोहनजी को झुलाया जाएगा।नियमानुसार झुले उपरांत श्री मदनमोहनजी कमल चौक में पधार कर हिंडोलना में बिराजते हैं, दर्शन खुलते हैं और वैष्णवों पर आनंद वृष्टि होती है.
श्री मदनमोहनजी को अन्य दिनों में वेणुजी नहीं धरायी जाती क्योंकि वेणुजी द्वारा कामदेव भी मोहित हो सकते हैं परन्तु हिंडोलना के 32 दिवसों में सबके मन को मोहने के भाव से श्री मदनमोहनजी को हिंडोलने में वेणुजी धरायी जाती है.
श्री मदनमोहनजी किशोर भाव से एवं श्री बालकृष्णलालजी बाल भाव से हिंडोलने में झूलते हैं. श्री बालकृष्णलालजी को प्रतिदिन हिंडोलना में नहीं झुलाया जाता है.
हिंडोलना की लीला किशोर भाव की लीला है. हिंडोलना में कोई भी स्वरुप झूले परन्तु किशोर भाव की लीला होने से श्री गोकुलचन्द्रमाजी, श्री विट्ठलनाथजी, श्री मदनमोहनजी एवं श्री गोवर्धननाथजी इन चार किशोर भाव के स्वरूपों को संबोधित करते कीर्तन ही गाये जाते हैं.
विश्व के अन्य सभी पुष्टिमार्गीय मंदिरों की तुलना में नाथद्वारा में श्रीजी के हिंडोलने की कुछ अंतर हैं जो कि श्रीजी के हिंडोलने को विशिष्टता प्रदान करती हैं.
अन्य मंदिरों में ठाकुर जी हिंडोलने में सिंहासन के ऊपर बिराजते हैं जबकि श्रीजी में प्रभु श्री मदनमोहन जी चौकी पर बिराजते हैं. इसका कारण यह है कि अन्य सभी मंदिरों में ठाकुरजी नंदालय की भावना से यशोदा की गोद में बिराज कर झूलते हैं परन्तु श्री गोवर्धनधरण प्रभु श्रीनाथजी निकुंजनायक और गौलोकनाथ हैं जिनको चारों ओर से व्रजललनाएं झूलाती और दर्शन करती हैं इस भाव से श्री मदनमोहनजी चौकी पर बिराजित होकर झूलते हैं.
नाथद्वारा में श्री मदनमोहनजी भोग समय हिंडोलना में विराजित हो कर झूलते हैं जबकि अन्य सभी मंदिरों में ठाकुरजी को संध्या-आरती पश्चात हिंडोलना में झुलाया जाता है.
इसका कारण यह है कि अन्य सभी मंदिरों में ठाकुर जी गाय चराकर घर पधारते हैं फिर उनको धैया (दूध) आरोगा कर व्रजरानी यशोदाजी अपनी गोद में बिठा उन्हें झूलाती हैं परन्तु यहाँ किशोर भाव से श्री ठाकुरजी व्रज के कुंज-निकुंज में हिंडोलना झूल कर ही घर पधारते हैं तत्पश्चात धैया (दूध) अरोगते हैं अतः श्री मदनमोहनजी को भोग समय हिंडोलना में झुलाया जाता है और झूल कर भीतर पधारने के पश्चात धैया (दूध) अरोगायी जाती है.
हिंडोलना अधिवासन –
कीर्तन – (राग : धनाश्री)
रोप्यो हिंडोरों नंदगृह मुहूरत शुभ घरी देख l
विश्वकर्मा रचि पचि गढ़यो सुहातक रत्न विशेष ll
हिन्डोरनाहो रोप्यो नंद अवास, हिन्डोरनाहो मणिमय भूमि सुवास l
हिन्डोरनाहो विश्वकर्मा सूत्रधार, हिन्डोरनाहो कंचन खंभ सुढार ll
छंद :
कंचन खंभ सुढार डांडी साल भमरा फबि रहे l
हीरा पिरोजा कनक मणिमय जोति अति जगमग रहे l
चित्र फटिक प्रकाश चंहू दिश कहा कहूँ निरमोलना
कहें ‘कृष्णदास’ विलास निशदिन नंदभवन हिन्डोरना ll 1 ll
संध्या-आरती समय हिंडोलना रोपण के पश्चात उत्सव भोग में विशेष रूप से खस्ता शक्करपारा, छुट्टी बूंदी, दूधघर में सिद्ध मावे के पेड़ा-बर्फी, दूधपूड़ी (मलाई पूड़ी), केशर युक्त बासोंदी (रबड़ी), जीरा युक्त दही, केसरी-सफेद मावे की गुंजिया, घी में तला हुआ चालनी का सूखा मेवा, विविध प्रकार के संदाना (आचार) के बटेरा, विविध प्रकार के फल, शीतल आदि अरोगाये जाते हैं.
ऊष्णकाल की समाप्ति और श्रावण मास के आरम्भ के साथ आज से लिचोई-आमरस बंद हो जाता है एवं चूरमा-बाटी, मानभोग अथवा सीरा (हलवा – गेहूं के आटे और मूंग की दाल का) अरोगना प्रारंभ हो जाता है.
हिंडोलना रोपण की बधाई