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SHREEJI DARSHAN & SHRINGAR/भाद्रपद-कृष्ण पक्ष-चतुर्दशी

जय श्री कृष्ण 🙏

व्रज – भाद्रपद कृष्ण पक्ष चतुर्दशी
Friday, 22 August 2025

क्रीड़त मनिमय आँगन रंग l
पीत ताप को बन्यो झगुला, कुल्हे लाल सुरंग ।।१।।
कटि किंकिनी घोष विस्मित सखी धाय चलत संग ।
गोसुत पुच्छ भ्रमावत कर ग्रही पंकराग सोहे अंग ।।२।।
गजमोतिन लर लटकत भ्रोंहपें सुन्दर लहर तरंग ।
‘गोविन्द’ प्रभुके अंग अंग पर वारों कोटिक अनंग ।।३।।

श्री काका-वल्लभजी ने यह श्रृंगार श्री गोविन्दस्वामी के उपरोक्त पद के आधार पर किया था आज के श्रृंगार की यह विशेषता है कि वर्षभर में केवल आज ही के दिन कुल्हे और वस्त्र अलग-अलग रंग के होते हैं.

नित्यलीलास्थ गौस्वामी श्री काका-वल्लभ जी का उत्सव

विशेष – आज नित्यलीलास्थ गौस्वामी श्री काका-वल्लभ जी का उत्सव है. आपका जन्म विक्रम संवत 1703 में गोकुल में हुआ था.

आप टिपारा वाले नित्यलीलास्थ गौस्वामी विट्ठलेशरायजी के सबसे छोटे पुत्र एवं नित्यलीलास्थ गौस्वामी तिलकायत श्री दामोदरजी महाराज (जिन्होंने श्रीजी को व्रज से मेवाड़ में पधराये) के काकाजी थे.आपके 68 वचनामृत बहुत प्रसिद्ध हैं. आपने महाप्रभु श्रीमद्वल्लभाचार्य के ग्रंथ सुबोधिनीजी’ पर “व्याख्यात्मक निबन्ध” लिखा इसीलिए आप ‘श्री वल्लभजी लेखवाले’ के नाम से जानें गए ।

आपने व्रज से मेवाड़ पधारते समय श्रीजी की बहुत सेवा की जिससे प्रसन्न हो कर श्रीजी ने उनको आज्ञा करके स्वयं के श्रृंगार धरवाये. मेवाड़ पधारने के बाद आपने श्रीजी को आज का पीत पिछोड़ा एवं लाल कुल्हे का श्रृंगार धराया. तब से यह श्रृंगार प्रतिवर्ष आज के दिन होता है.

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : सारंग)

क्रीड़त मनिमय आँगन रंग l
पीत ताप को बन्यो झगुला, कुल्हे लाल सुरंग ।।१।।
कटि किंकिनी घोष विस्मित सखी धाय चलत संग ।
गोसुत पुच्छ भ्रमावत कर ग्रही पंकराग सोहे अंग ।।२।।
गजमोतिन लर लटकत भ्रोंहपें सुन्दर लहर तरंग ।
‘गोविन्द’ प्रभुके अंग अंग पर वारों कोटिक अनंग ।।३।।

साज – श्रीजी में आज पीले रंग की मलमल पर रुपहली ज़री की तुईलैस के हांशिया (किनारी) वाली पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया के ऊपर सफेद बिछावट की जाती है तथा स्वर्ण की रत्नजड़ित चरणचौकी के ऊपर हरी मखमल मढ़ी हुई होती है.

वस्त्र – श्रीजी में आज रुपहली किनारी से सुसज्जित पीले मलमल का पिछोड़ा धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र मेघश्याम रंग के होते हैं.

श्रृंगार – श्रीजी को आज वनमाला का (चरणारविन्द तक) भारी श्रृंगार धराया जाता है. फ़िरोज़ा के सर्व आभरण धराये जाते हैं.

श्रीमस्तक पर लाल कुल्हे के ऊपर सिरपैंच, रुपहली घेरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं.

श्रीकर्ण में मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं. बायीं ओर मीना की चोटी भी धरायी जाती है.कली, कस्तूरी आदि सभी माला धरायी जाती है.पीले एवं श्वेत पुष्पों की दो कलात्मक मालाजी धरायी जाती है.

श्रीहस्त में कमलछड़ी, फ़िरोज़ा के वेणुजी एवं दो वेत्रजी (एक फ़िरोज़ा व एक सोने के) धराये जाते हैं.पट पीला, गोटी राग-रंग की एवं आरसी शृंगार में लाल मख़मल की व राजभोग में सोने की डांडी की आती है.

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