WhatsApp Image 2025 10 17 at 9.33.39 AM

SHREEJI DARSHAN & SHRINGAR/

जय श्री कृष्ण 🙏

व्रज – कार्तिक कृष्ण पक्ष एकादशी (रमा एकादशी व्रत)
Friday, 17 October 2025

आज रमा एकादशी है लेकिन दीपावली चतुर्दशी को होने के कारण द्वादशी का श्रृंगार आज लिया गया हैं.

विशेष – आज की एकादशी को रमा एकादशी कहा जाता है. कहा जाता है कि आज के दिन रमा नाम की व्रजगोपी ने श्री यशोदाजी को नंदालय में दीपावली की बधाई दी थी जिससे नंदालय में नगाड़े बजाये जाते हैं.

दीपावली तक प्रतिदिन रौशनी की जाती है. मंदिर के द्वार (नक्कार खाने) के ऊपर नौबत नगाड़े बजाये जाते हैं.

सेवाक्रम – विगत दशमी से कार्तिक शुक्ल द्वितीया (भाईदूज) तक प्रभु पूरे दिन झारीजी में यमुनाजल अरोगते हैं.आज निज मंदिर में फूल-पत्ती की बाड़ी आती हैं.

आज का श्रृंगार तुंगविद्याजी की ओर है और आज का श्रृंगार निश्चित है जिसमें पीली सलीदार ज़री के घेरदार वागा धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर पीला चीरा (ज़री की पाग) के ऊपर पन्ना की सीधी चन्द्रिका धरायी जाती है. तकिया पर मखमल की खोल आती है.

व्रज में गौवंश ही धन का स्वरुप है अतः श्री ठाकुरजी एवं व्रजवासी गायों का श्रृंगार करते हैं, उनका पूजन करते हैं एवं उनको थूली खिलाते हैं. आज से चार दिन दीपदान का विशेष महत्व है अतः व्रज में सर्वत्र दीपदान और रौशनी की जाती है.

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : सारंग)

मदन गोपाल गोवर्धन पूजत l
बाजत ताल मृदंग शंखध्वनि मधुर मधुर मुरली कल कूजत ll 1 ll
कुंकुम तिलक लिलाट दिये नव वसन साज आई गोपीजन l
आसपास सुन्दरी कनक तन मध्य गोपाल बने मरकत मन ll 2 ll
आनंद मगन ग्वाल सब डोलत ही ही घुमरि धौरी बुलावत l
राते पीरे बने टिपारे मोहन अपनी धेनु खिलावत ll 3 ll
छिरकत हरद दूध दधि अक्षत देत असीस सकल लागत पग l
‘कुंभनदास’ प्रभु गोवर्धनधर गोकुल करो पिय राज अखिल युग ll 4 ll

साज – लाल रंग के आधारवस्त्र पर सुनहरी सीलमाँ-सितारा के विद्रुम के जाल के ज़रदोज़ी के काम की एवं हांशिया वाली पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर लाल मखमल की बिछावट की जाती है.

वस्त्र- श्रीजी को आज पीली सलीदार ज़री की सूथन, चोली, घेरदार वागा एवं पटका धराये जाते हैं. ठाड़े वस्त्र हरे रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – प्रभु को आज मध्य का (घुटने तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. पन्ना तथा सोने के सर्व आभरण धराये जाते हैं.

श्रीमस्तक पर सुनहरी ज़री के चीरा (ज़री की पाग) के ऊपर सिरपैंच, लूम, पन्ना की सीधी चन्द्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में कर्णफूल की दो जोड़ी धराये जाते हैं.

कड़ा, हस्त, सांखला, हांस, त्रवल सभी धराये जाते हैं. कली की माला धरायी जाती है.

श्रीहस्त में कमलछड़ी, पन्ना के वेणुजी एवं दो वेत्रजी (एक सोना का) धराये जाते हैं.पट प्रतिनिधि का व गोटी सोने की बड़ी आती है.आरसी चाँदी की काँच के कलात्मक काम की आती है.

विगत दशमी से ही प्रतिदिन प्रभु के सम्मुख उत्थापन उपरांत पुष्प-पत्तियों की बाड़ी धरी जाती है जो शयन उपरांत बड़ी कर दी जाती है.

संध्या-आरती दर्शन उपरांत प्रभु के श्रीमस्तक व श्रीकंठ के आभरण बड़े कर छेड़ान के आभरण धराये जाते हैं व श्रीमस्तक पर सुनहरी लूम-तुर्रा धराये जाते हैं.

शयन दर्शन में मणिकोठा व डोलतिबारी में हांडी में रौशनी की जाती है वहीं निज मन्दिर में कांच मृदंग में रौशनी की जाती है.

दशमी से प्रतिदिन शयन के अनोसर में प्रभु को सूखे मेवे और मिश्री से निर्मित मिठाई, खिलौने आदि का थाल आरोगाया जाता है.

इसके अतिरिक्त दशमी से ही अनोसर में प्रभु के सम्मुख इत्रदान व चोपड़ा (इलायची, जायफल, जावित्री, सुपारी और लौंग आदि) भी रखे जाते हैं.

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Shopping Cart