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SHREEJI DARSHAN & SHRINGAR/ज्येष्ठ-शुक्ल पक्ष-पूर्णिमा

जय श्री कृष्ण 🙏

व्रज – ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष पूर्णिमा
Wednesday, 11 June 2025

ज्येष्ठाभिषेक (स्नान-यात्रा)

मंगला दर्शन

(मंगला समय सुबह 4.45 बजे)

स्नान का कीर्तन – (राग-बिलावल)

मंगल ज्येष्ठ जेष्ठा पून्यो करत स्नान गोवर्धनधारी l
दधि और दूब मधु ले सखीरी केसरघट जल डारत प्यारी ll 1 ll
चोवा चन्दन मृगमद सौरभ सरस सुगंध कपूरन न्यारी l
अरगजा अंग अंग प्रतिलेपन कालिंदी मध्य केलि विहारी ll 2 ll
सखियन यूथयूथ मिलि छिरकत गावत तान तरंगन भारी l
केशो किशोर सकल सुखदाता श्रीवल्लभनंदनकी बलिहारी ll 3 ll

 

ज्येष्ठाभिषेक (स्नान-यात्रा)

मंगला दर्शन

विशेष – आज ज्येष्ठाभिषेक है. इसे केसर स्नान अथवा स्नान-यात्रा भी कहा जाता है.
आज के दिन ही ज्येष्ठाभिषेक स्नान का भाव एवं सवालक्ष आम अरोगाये जाने का भाव ये हे की यह स्नान ज्येष्ठ मास में चन्द्र राशि के ज्येष्ठा नक्षत्र में होता है और सामान्यतया ज्येष्ठ शुक्ल पूर्णिमा को होता है.

श्री नंदरायजी ने श्री ठाकुरजी का राज्याभिषेक कर उनको व्रजराजकुंवर से व्रजराज के पद पर आसीन किया, यह उसका उत्सव है.

इसी भाव से स्नान-अभिषेक के समय वेदमन्त्रों-पुरुषसूक्त का वाचन किया जाता है. वेदोक्त उत्सव होने के कारण सर्वप्रथम शंख से स्नान कराया जाता है.

इस आनंद के अवसर पर व्रजवासी अपनी ओर से प्रभु को अपनी ओर से अपनी ऋतु के फल की भेंट के रूप में उत्तमोत्तम ‘रसस्वरुप’ आम प्रभु को भोग रखते हैं इस भाव से आज श्रीजी को सवा लाख (1,25,000) आम (विशेषकर रत्नागिरी व केसर) आरोगाये जाते हैं.

ऐसा भी कहा जाता है कि व्रज में ज्येष्ठ मास में पूरे माह श्री यमुनाजी के पद, गुणगान, जल-विहार के मनोरथ आदि हुए. इसके उद्यापन स्वरुप आज प्रभु को सवालक्ष आम अरोगा कर पूर्णता की.

अद्भुत – श्रीजी प्रभु वर्ष में विविध दिनों में चारों धाम के चारों स्वरूपों का आनंद प्रदान करते हैं. आज ज्येष्ठाभिषेक स्नान में प्रभु श्रीजी दक्षिण के धाम रामेश्वरम (शिव स्वरूप) के भावरूप में वैष्णवों को दर्शन देते हैं जिसमें प्रभु के जूड़े (जटा) का दर्शन होता है.

आज मंगला दर्शन में श्रीजी को प्रतिदिन की भांति आड़बंद धराया जाता है. मंगला आरती के उपरांत खुले दर्शनों में ही टेरा ले लिया जाता है और अनोसर के सभी आभरण व प्रभु का आड़बंद बड़ा (हटा) कर लाल रंग की किनारी से सुसज्जित श्वेत धोती, गाती का पटका एवं स्वर्ण के सात आभरण धराये जाते हैं.

इस उपरांत टेरा हटा लिया जाता है और प्रभु का ज्येष्ठाभिषेक प्रारंभ हो जाता है.

सर्वप्रथम ठाकुरजी को कुंकुम से तिलक व अक्षत किया जाता है. तुलसी समर्पित की जाती है. पूज्य श्री तिलकायत अथवा उपस्थित गौस्वामी बालक (चिरंजीवी श्री विशालबावा) स्नान का संकल्प लेते हैं और रजत चौकी पर चढ़कर मंत्रोच्चार, शंखनाद, झालर, घंटा आदि की मधुर ध्वनि के मध्य पिछली रात्रि के अधिवासित केशर-बरास युक्त जल से प्रभु का अभिषेक करते हैं.

सर्वप्रथम शंख से ठाकुरजी को स्नान कराया जाता है और इस दौरान पुरुषसूक्त गाये जाते हैं. पुरुषसूक्त पाठ पूर्ण होने पर स्वर्ण कलश में जल भरकर 108 बार प्रभु को स्नान कराया जाता है. इस अवधि में ज्येष्ठाभिषेक स्नान के कीर्तन गाये जाते हैं.

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