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SHREEJI DARSHAN & SHRINGAR/श्रावण-शुक्ल पक्ष-द्वादशी

जय श्री कृष्ण 🙏

व्रज – श्रावण शुक्ल पक्ष द्वादशी
Wednesday, 06 August 2025

पवित्रा द्वादशी

आज पवित्रा द्वादशी है.श्रावण शुक्ल एकादशी की मध्यरात्रि को स्वयं ठाकुरजी ने प्रकट होकर श्री महाप्रभुजी को दैवीजीवों को ब्रह्म-सम्बन्ध देने की आज्ञा दी.

इस प्रकार श्रावण शुक्ल द्वादशी के दिन श्रीवल्लभ ने सब से प्रथम ब्रह्म-सम्बन्ध वैष्णव दामोदर दास हरसानी को दिया. तब से एकादशी का दिन सभी वैष्णवों में पुष्टिमार्ग की स्थापना दिवस-समर्पण दिवस के रूप में मनाया जाता है.

श्री महाप्रभुजी को स्वयं श्रीजी ने ब्रह्म-सम्बन्ध देने की आज्ञा प्रदान की इस कारण सभी वैष्णवों को वल्लभ कुल के बालकों से ही ब्रह्म-सम्बन्ध लेना चाहिए, किसी अन्य साधु-संत आदि से नहीं लिया जाना चाहिए.

वल्लभ कुल के बालक श्री महाप्रभुजी की ओर से ब्रह्म-सम्बन्ध देते हैं अतः पुष्टिमार्ग के गुरु श्री महाप्रभुजी हैं.

जिस प्रकार हिन्दू धर्म के अन्य सम्प्रदायों में आषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा (गुरु पूर्णिमा) को गुरु का पूजन किया जाता है उसी प्रकार पुष्टिमार्गीय वैष्णव संप्रदाय में आज के दिन गुरु का पूजन किया जाता है.

सभी वैष्णव आज के दिन श्री ठाकुरजी को पवित्रा धराये पश्चात अपने ब्रह्म-सम्बन्ध देने वाले गुरु को पवित्रा, यथाशक्ति भेंट आदि धरें एवं दंडवत करें इसके पश्चात वैष्णवों को परस्पर प्रसादी मिश्री देकर ‘जय श्री कृष्ण’ कहें.

यदि गुरु किसी अन्य स्थान पर हों अर्थात उनके साक्षात् चरणस्पर्श दंडवत संभव न हों तो उन्हें पवित्रा व भेंट किसी भी रीती (पोस्ट से, कुरियर से अथवा किसी व्यक्ति के साथ) भेजें. भेंट भी भविष्य में साक्षात् होने पर उनके सम्मुख रखें.

यदि गुरु नित्यलीलास्थ हो गए हों तो ही उनके चित्र पर पवित्रा धराकर कर दंडवत करें, भेंट धरें और उपरांत उनके पुत्र को, उनके परिवार के किन्ही अन्य सदस्य को अथवा किसी अन्य गोस्वामी बालक जिनके आप संपर्क में हों उनको भेंट कर दें.

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : सारंग)

सब ग्वाल नाचे गोपी गावे l प्रेम मगन कछु कहत न आवे ll 1 ll
हमारे राय घर ढोटा जायो l सुनि सब लोक बधाये आयो ll 2 ll
दूध दधि घृत कांवरि ढोरी l तंदुल डूब अलंकृत रोरी ll 3 ll
हरद दूध दधि छिरकत अंगा l लसत पीत पट बसन सुरंगा ll 4 ll
ताल पखावज दुंदुभि ढोला l हसत परस्पर करत कलोला ll 5 ll
अजिर पंक गुलफन चढि आये l रपटत फिरत पग न ठहराये ll 6 ll
वारि वारि पटभूषन दीने l लटकत फिरत महारस भीने ll 7 ll
सुधि न परे को काकी नारी l हसि हसि देत परस्पर तारी ll 8 ll
सुर विमान सब कौतिक भूले l मुदित त्रिलोक विमोहित फूले ll 9 ll

साज – आज श्रीजी में सफेद रंग की मलमल की धोरेवाली (थोड़े-थोड़े अंतर से रुपहली ज़री लगायी हुई) सुनहरी ज़री की हांशिया (किनारी) वाली पिछवाई धरायी जाती है. पिछवाई में सात स्वरूप श्री महाप्रभुजी श्रीजी को पवित्रा धरा रहे हैं एवं श्री गुसाई जी मोरछल की सेवा कर रहे हैं ऐसा सुन्दर चित्रांकन किया गया है. गादी और तकिया के ऊपर सफेद बिछावट की जाती है तथा स्वर्ण की रत्नजड़ित चरणचौकी के ऊपर हरी मखमल मढ़ी हुई होती है. पीठिका के ऊपर व इसी प्रकार से पिछवाई के ऊपर रेशम के रंग-बिरंगे पवित्रा धराये जाते हैं.

वस्त्र – श्रीजी को आज गुलाबी मलमल का रुपहली किनारी से सुसज्जित पिछोड़ा धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र हरे रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – श्रीजी को आज छोटा (मध्य से दो अंगुल ऊपर) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. पन्ना एवं सोने के आभरण धराये जाते हैं. एक कली की माला धरायी जाती है.

श्रीमस्तक पर पतंगी रंग की छज्जेदार पाग के ऊपर सिरपैंच, लूम, पन्ना वाली चमकनी चन्द्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराया जाता है.

श्रीकर्ण में पन्ना के चार कर्णफूल धराये जाते हैं. श्वेत पुष्पों की रंग-बिरंगी थाग वाली दो मालजी एवं विविध प्रकार के रंग-बिरंगे पवित्रा मालाजी के रूप में धराये जाते हैं.

श्रीहस्त में कमलछड़ी, पन्ना के वेणुजी एवं दो वैत्रजी (एक पन्ना व एक सोने के) धराये जाते हैं.पट गुलाबी, गोटी छोटी सोने की आती है.आरसी शृंगार में लाल मख़मल की एवं राजभोग में सोना की डांडी की आती हैं.

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