जय श्री कृष्ण 🙏
व्रज – आश्विन शुक्ल पक्ष त्रयोदशी
Sunday, 05 October 2025
रासपंचाध्यायी के आधार पर श्रीनाथजी को शरद पूर्णिमा रास महोत्सव के मुकुट के पांच अध्याय के वर्णित श्रृंगार धराये जाते हैं. आज रास का तीसरा मुकुट-काछनी का श्रृंगार धराया जायेगा.
यह श्रृंगार आश्विन शुक्ल चतुर्दशी को धराया जाता है परन्तु इस साल शरद पूर्णिमा का उत्सव आश्विन शुक्ल चतुर्दशी को है इसलिए आज त्रयोदशी के दिन धराया जाएगा.
रास के भाव से आज, कल और परसों (तीनों दिन) मुकुट-काछनी का श्रृंगार धराया जाएगा.
आज महारास की सेवा का तृतीय अध्याय का मुकुट का श्रृंगार है जिसमें लाल ज़री के हांशिया वाली ज़री की काछनी, रास के चित्रांकन वाली पिछवाई धरायी जाती है. मुकुट धराया जाता है एवं श्री यमुनाजी के भाव से शयन में मंगला की भांति चूंदड़ी का उपरना धराया जाता है.
राजभोग दर्शन –
कीर्तन – (राग : सारांग)
करत हरि नृत्य नवरंग राधा संग,
लेत नवगति भेद, चरचरी तालके ।
परस्पर दरस रसमत्त भये तत्त थेई थेई,
गति लेत संगीत सुरसालके ॥ १ ॥
फरहरत बर्हिवर थरहरत उपहार,
भरहरत भ्रमर वर, विमल वनमालके ।
खसित सित कुसुम शिर, हँसत कुंतल मानों,
लसत कल झलमलत,स्वेद कण भालके ॥ २ ॥
अंग अंगन लटक मटक भृंगन भ्रोंह,
पटक पटताल कोमल चरण चालके ।
चमक चल कुंडलन दमक दशनावली,
विविध विद्युत भाव, लोचन विशालके ॥ ३ ॥
बजत अनुसार द्रिम द्रिम मृदंग निनाद,
झमक झंकार, कटि किंकिणि जालके ।
तरल ताटक तड़ित, नील नव जलद में,
यौं विराजत प्रिया, पास गोपालके ॥ ४ ॥
युवति जन यूथ अगणित, बदन चंद्रमा,
चंद्र भयौ मंद उद्योत तिहिं कालके ।
मुदित अनुराग वश, राग रागिणी,
तान गान गत गर्व, रंभादि सुर बालके ॥ ५ ॥
गगनचर सघन रास मगन बरषत फूल,
बार डारत रत्न जतन भर थालके ।
एक रसना गदाधर न वर्णत बनै,
चरित्र अद्भुत कुँवर गिरिधरन लालके ॥ ६ ॥
साज – श्रीजी में आज रासलीला के चित्रांकन वाली पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया और चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है.
वस्त्र – श्रीजी को आज लाल हाशियां का सफ़ेद ज़री का सूथन, काछनी एवं सफ़ेद मलमल का रास-पटका धराया जाता है.चोली स्याम सुतरु की धरायी जाती हैं. ठाड़े वस्त्र सफेद जामदानी (चिकन) के धराये जाते हैं.
श्रृंगार – प्रभु को आज वनमाला (चरणारविन्द तक) का भारी श्रृंगार धराया जाता है. मिलवा – हीरे एवं मोती के सर्व आभरण धराये जाते हैं.श्रीमस्तक पर डाख का मुकुट एवं बायीं ओर शीशफूल धराया जाता है. शरद के दिनो में चोटी (शिखा) नहीं धरायी जाती है. श्रीकर्ण में हीरा के मयूराकृति कुंडल धराये जाते हैं.
आज हास एवं त्रवल नहीं धराये जाते हैं.कली कस्तूरी एवं कमल माला धरायीं जाती हैं.हीरा की बग्घी एवं बग्घी की कंठी धरायी जाती हैं.श्वेत पुष्पों की कलात्मक थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है.श्रीहस्त में कमलछड़ी, चाँदी के वेणुजी दो वैत्रजी धराये जाते हैं.पट लाल गोटी मोर की आती हैं.
संध्या-आरती दर्शन उपरांत सारे वस्त्र, शृंगार ठाड़े वस्त्र पिछवाई बड़े कर के शयन के दर्शन में मंगला के दर्शन की भांति चुंदड़ी का उपरना एवं गोल पाग एवं हीरा मोती के छेड़ान के शृंगार धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर रुपहरी लूम-तुर्रा धराये जाते हैं.