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SHREEJI DARSHAN & SHRINGAR/श्रावण-शुक्ल पक्ष-अष्टमी(प्रथम)

जय श्री कृष्ण 🙏

व्रज -श्रावण शुक्ल पक्ष अष्टमी(प्रथम)
Friday, 01 August 2025

बगीचा उत्सव (श्री नवनीतप्रियाजी)

विशेष – आज श्री नवनीतप्रियाजी में बगीचा उत्सव होगा. आज के दिन प्रभु श्री नवनीतप्रियाजी श्रीजी मंदिर में स्थित श्री महाप्रभुजी की बैठक वाले बगीचे में विहार एवं झूलने को पधारते हैं.

व्रज में नन्दगाँव के पास नंदरायजी का बगीचा है जहाँ नंदकुमार खेलने एवं झूलने के लिए पधारते थे इस भाव से आज बैठक के बगीचे को नंदरायजी का बगीचा मानकर श्री नवनीतप्रियाजी वहां झूलने पधारते हैं. श्री नवनीतप्रियाजी वर्ष में दो बार (आज के दिन व फाल्गुन शुक्ल अष्टमी) के दिन महाप्रभु की बैठक स्थित इस बगीचे में पधारते हैं.

आज द्वितीय गृह पिठाधीश्वर श्री कृष्णरायजी (1857) का प्राकट्योंत्सव
होने से श्रीजी को धराये जाने वाले आज के वस्त्र द्वितीय गृहाधीश्वर प्रभु विट्ठलनाथजी के घर (मंदिर) से सिद्ध हो कर आते हैं वस्त्रों के साथ श्रीजी और श्री नवनीतप्रियाजी के भोग हेतु बूंदी के लड्डुओं की छाब भी वहीँ से आती है.

नित्यलीलास्थ श्री कृष्णरायजी से जुड़ा एक प्रसंग मुझे स्मरण है जिसे मैं आपसे साझा करना चाहूँगा. निधि स्वरुप विराजित हैं तो वैसे भी घर का वैभव बढ़ ही जाता है परन्तु तब प्रभु श्री विट्ठलनाथजी की कृपा से द्वितीय गृह अत्यन्त वैभवपूर्ण स्वरुप में था और तत्समय श्रीजी में अत्यधिक ऋण हो गया.

जब आपको यह ज्ञात हुआ तब आपने अपना अहोभाग्य मान कर प्रभु सुखार्थ अपना द्रव्य समर्पित किया और प्रधान पीठ को ऋणमुक्त कराया.

आप द्वारा की गयी इस अद्भुत सेवा के बदले में श्रीजी कृपा से आपको कार्तिक शुक्ल नवमी (अक्षय नवमी) की श्रीजी की की पूरे दिन की सेवा और श्रृंगार का अधिकार प्राप्त हुआ था. आज भी प्रभु श्री गोवर्धनधरण द्वितीय गृह के बालकों के हस्त से अक्षय नवमी के दिन की सेवा अंगीकार करते हैं.

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : गोड मल्हार)

माईरी घन मृदंग रसभेदसो बाजत नाचत चपला चंचल गति l
कोकिला अलापत पपैया उरपलेत मोर सुघर सूर साजत ll 1 ll
दादुर तालधार ध्वनि सुनियत रुनझुन रुनझुन नुपूर बाजत l
‘तानसेन’ के प्रभु तुम बहु नायक कुंज महेल दोउ राजत ll 2 ll

साज – वर्षाऋतु में बादलों की घटा एवं बिजली की चमक के मध्य यमुनाजी के किनारे कुंज में एक ओर श्री ठाकुरजी एवं दूसरी ओर स्वामिनीजी को व्रजभक्त झूला झुला रहे हैं. प्रभु की पीठिका के आसपास सोने के हिंडोलने का सुन्दर भावात्मक चित्रांकन किया है जिसमें ऐसा प्रतीत होता है कि प्रभु स्वर्ण हिंडोलना में झूल रहे हों, ऐसे सुन्दर चित्रांकन से सुशोभित पिछवाई आज श्रीजी में धरायी जाती है.गादी और तकिया के ऊपर सफेद बिछावट की जाती है तथा स्वर्ण की रत्नजड़ित चरणचौकी के ऊपर हरी मखमल मढ़ी हुई होती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को पीले रंग की मलमल की सुनहरी ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, काछनी एवं रास पटका धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र श्वेत डोरीया के धराये जाते है.

श्रृंगार – प्रभु को आज वनमाला (चरणारविन्द तक) का भारी श्रृंगार धराया जाता है. सर्वआभरण फ़ीरोज़ा के धराये जाते हैं.श्रीमस्तक पर सिलमा सितारा का मुकुट व टोपी एवं बायीं ओर शीशफूल धराया जाता है.

श्रीकर्ण में फ़ीरोज़ा के मयूराकृति कुंडल धराये जाते हैं. चोटीजी मीना की आती हैं.श्रीकंठ में कली,कस्तूरी आदि की माला आती हैं.पीले पुष्पों के रंग-बिरंगी थाग वाली दो सुन्दर मालाजी एवं कमल के फूल की मालाजी धरायी जाती है.

श्रीहस्त में एक कमल की कमलछड़ी, भाभीजी वाले वेणुजी एवं दो वेत्रजी (एक सोना का) धराये जाते हैं.पट पिला एवं गोटी मोर वाली धराई जाती हैं.

देखो माई भीज़त गिरिधरधारी,
मोर मुकुट तन श्याम पीत पट घनदामिनी अनुहारी.

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