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SHREEJI DARSHAN & SHRINGAR/भाद्रपद-शुक्ल पक्ष-पूर्णिमा

जय श्री कृष्ण 🙏

व्रज – भाद्रपद शुक्ल पक्ष पूर्णिमा
Sunday, 07 September 2025

मुकुट काछनी का श्रृंगार, सांझी का प्रारंभ, ग्रस्तोदित खग्रास चंद्रग्रहण

विशेष – आज श्रीजी को दान का दूसरा मुकुट-काछनी का श्रृंगार धराया जायेगा. प्रभु को मुख्य रूप से तीन लीलाओं (शरद-रास, दान और गौ-चारण) के भाव से मुकुट का श्रृंगार धराया जाता है. इस उपरांत निकुँज लीला में भी मुकुट धराया जाता है. मुकुट उद्बोधक है एवं भक्ति का उद्बोधन कराता है.

दान और रास के भाव के मुकुट-काछनी के श्रृंगार में पीताम्बर (जिसे रास-पटका भी कहा जाता है) धराया जाता है जबकि गौ-चारण के भाव में गाती का पटका (जिसे उपरना भी कहा जाता है) धराया जाता है. दान के दिनों के मुकुट काछनी के श्रृंगार की कुछ और विशेषताएँ भी है.

इन दिनों में जब भी मुकुट धराया जावे तब मुकुट को एक वस्त्र से बांधा जाता है जिससे जब प्रभु मटकी फोड़ने कूदें तब मुकुट गिरे नहीं. इसके अतिरिक्त दान के दिनों में मुकुट काछनी के श्रृंगार में स्वरुप के बायीं ओर चोटी (शिखा) नहीं धरायी जाती. इसके पीछे यह भाव है कि यदि चोटी (शिखा) रही तो प्रभु जब मटकी फोड़कर भाग रहे हों तब गोपियाँ उनकी चोटी (शिखा) पकड़ सकती हैं और प्रभु भाग नहीं पाएंगे.

आज का दान महादान कहा जाता है इस कारण आज श्रीजी को दान की अधिक और विशेष हांडियां अरोगायी जाती है.

सांझी – आज से पुष्टिमार्गीय मंदिरों में सांझी का प्रारंभ होता है. श्रीजी मंदिर में कमलचौक में हाथीपोल के द्वार के बाहर आज से पंद्रह दिन तक संध्या-आरती पश्चात चौरासी कोस की व्रजयात्रा की लीला की सांझी मांडी जाती है.सफेद पत्थर के ऊपर कलात्मक रूप से केले के वृक्ष के पत्तों से विभिन्न आकर बना कर सुन्दर सांझी सजायी जाती है एवं उन्हीं पत्तों से उस दिन की लीला का नाम भी लिखा जाता है. भोग-आरती में सांझी के कीर्तन गाये जाते हैं. प्रतिदिन श्रीजी को अरोगाया एक लड्डू सांझी के आगे भोग रखा जाता है और सांझी मांडने वाले को दिया जाता है.

आज प्रथम दिन व्रजयात्रा की सांझी मांडी जाती है.

यह सांझी अगले दिन प्रातः मंगलभोग सरे तक रहती है और तदुपरांत बड़ी कर (हटा) दी जाती है.

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : सारंग)

कृपा अवलोकन दान देरी महादान वृखभान दुल्हारी ।
तृषित लोचन चकोर मेरे तू व बदन इन्दु किरण पान देरी ॥१॥
सबविध सुघर सुजान सुन्दर सुनहि बिनती कानदेरी ।
गोविन्द प्रभु पिय चरण परस कहे जाचक को तू मानदेरी ॥२॥

साज – आज श्रीजी में दानलीला एवं सांझीलीला के चित्रांकन वाली पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद रंग की बिछावट की जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को गुलाबी रंग की मलमल पर रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, काछनी तथा रास-पटका धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र सफेद भातवार के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – आज प्रभु को वनमाला (चरणारविन्द तक) का भारी श्रृंगार धराया जाता है. हीरा के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
श्रीमस्तक पर मोरपंखों से सुसज्जित स्वर्ण का रत्नजड़ित मुकुट एवं मुकुट पिताम्बर बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं.आज चोटीजी नहीं धरायी जाती है. श्रीकर्ण में हीरा के मयुराकृति कुंडल धराये जाते हैं.

श्रीकंठ में कली,कस्तूरी कमल आदि मालाजी धरायी जाती है.पीले एवं श्वेत पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है.

श्रीहस्त में कमलछड़ी, भाभीजी वाले वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते हैं.पट गुलाबी एवं गोटी मोर वाली आती हैं.

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