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SHREEJI DARSHAN & SHRINGAR/ज्येष्ठ-कृष्ण पक्ष-एकादशी

जय श्री कृष्ण 🙏

व्रज – ज्येष्ठ कृष्ण एकादशी
Friday, 23 May 2025

अपरा एकादशी

केसरी (चंदनिया) रंग का पिछोड़ा और दुमाला पर मोती के सेहरा के श्रृंगार

दिन दुल्हे तेरे सोहे शीश सुहावनो ।
मणि मोतिन को शेहरो सोहे बसियो मन मेरे ।।१।।
मुख पून्यो को चंद है मुक्ताहल तारे ।
उन के नयन चकोर हैं, ऐ सब देखन हारे ।।२।।
पिय बने प्यारि, अति सुंदर बनि आय ।
परम आगरी रूप नागरी ऐ सब देखन आई ।।३।।
दुलहनि रेन सुहाग की, दुलह सुंदर वर पायो ।
श्रीनंदलाल को शेहरो, जन परमानंद यश गायो ।।४।।

विशेष – आज मोहिनी एकादशी है.
आज श्रीजी को नियम का केसरी (चंदनिया) रंग का पिछोड़ा और दुमाला पर मोती के सेहरा का श्रृंगार धराया जाता है और सेहरा के भाव के कीर्तन गाये जाते हैं.

राजभोग दर्शन – (राग : सारंग)

आज बने गिरिधारी दुल्हे चंदनको तनलेप कीये l
सकल श्रृंगार बने मोतिन के विविध कुसुम की माल हिये ll 1 ll
खासाको कटि बन्यो है पिछोरा मोतिन सहरो सीस धरे l
रातै नैन बंक अनियारे चंचल अंजन मान हरे ll 2 ll
ठाडे कमल फिरावत गावत कुंडल श्रमकन बिंद परे l
‘सूरदास’ प्रभु मदन मोहन मिल राधासों रति केल करे ll 3 ll

साज – आज श्रीजी में सेहरा का श्रृंगार धराये श्री स्वामिनीजी, श्री यमुनाजी एवं मंगलगान करती व्रजगोपियों के सुन्दर चित्रांकन से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज केसरी (चंदनिया) रंग की मलमल का पिछोड़ा एवं अंतरवास का राजशाही पटका धराया जाता है. दोनों वस्त्र रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित होते हैं यद्यपि पिछोड़ा में किनारी को भीतर की ओर इस प्रकार मोड़ दिया जाता है कि बाहर दृश्य ना हों.

श्रृंगार – आज प्रभु को वनमाला का (चरणारविन्द तक) ऊष्णकालीन हल्का श्रृंगार धराया जाता है. मोती के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
श्रीमस्तक पर केसरी (चंदनिया) रंग के दुमाला के ऊपर मोती का सेहरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. दायीं ओर सेहरे की मोती की चोटी धरायी जाती है.
श्रीकर्ण में मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं.
कली आदि की माला श्रीकंठ में धरायी जाती है. श्वेत एवं गुलाबी पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी भी धरायी जाती हैं एवं इसी प्रकार श्वेत पुष्पों की एक मोटी मालाजी पीठिका के ऊपर भी धरायी जाती है.
श्रीहस्त में तीन कमल की कमलछड़ी, सुवा वाले वेणुजी एवं दो वेत्रजी (एक सुवा वाला व एक चांदी की) धराये जाते हैं.
पट गोटी ऊष्णकाल के राग-रंग के आते हैं.

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